यहां होली मनाना मतलब अपनी जान गंवाना

0
Why do we celebrate Holi

ऐसी जगह जहां होली मनाना अभिशाप है

पूरे भारतवर्ष में होली धूमधाम से मनाई जाती है। ये त्योहार ही ऐसा है कि हर कोई इस दिन सारे गिले शिकवे मिटाकर होली के रंग में रम जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कई जगह ऐसी भी जहां कोई होली नहीं खेलता। सुनकर चौक गए ना, लेकिन ये सच है। भारत में कुछ ऐसी जगह हैं जहां होली को अभिशाप माना जाता है, तो चलिए जानते हैं आखिर इन जगहों पर ऐसा क्या हुआ कि एक भी इंसान होली नहीं मनाता।

दुर्गापुर

होली खुशियों का त्योहार हैं लेकिन दुर्गापुर का कोई भी इंसान होली नहीं मनाता। ये गांव झारखंड के बोकारो में में है। आलम ये हैं कि यहां होली नजदीक आते ही सन्नाटा छा जाता है। ऐसा लगता हैं कि पूरा गांव किसी शोक में डूबा है। जानकर हैरानी होगी कि इस गांव में करीब 100 साल से लोगों ने होली नहीं मनाई। कहते हैं कि होली के दिन यहां कोई भी एक दूसरे को रंग नहीं लगाता। स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा करने से गांव में भयंकर महामारी और आपदा आ सकती है।

दंत कथाओं के अनुसार यहां के लोग अपने मरे हुए राजा की आज्ञा का पालन कर रहे हैं। लोगों को डर है कि अगर उन्होंने राजा की आज्ञा नहीं मानी, तो राजा की आत्मा गांव में भयानक तबाही मचा देगी।

100 साल पहले दुर्गापुर गांव पर कभी दुर्गा प्रसाद नाम के राजा का शासन हुआ करता था। लेकिन होली के दिन ही राजा के बेटे की मौत हो गई। इसके बाद जब गांव में होली मनाई गई। तो कोई ना कोई आपदा आ गई। कभी सूखा पड़ा तो कभी भयंकर महामारी फैल गई। जिसकी वजह से कई गांव वालों की मौत हो गई। महामारी और अकाल से परेशान होकर राजा ने गांव में होली ना मनाने का आदेश दे दिया। तब से किसी ने होली नहीं मनाई। इस घोषणा के कुछ समय बाद ही राजा की भी मौत हो गई, वो भी होली के ही दिन। तभी से यहां होली मनाने की परंपरा खत्म हो गई। ग्रामीणों का मानना है कि अगर राजा के आदेश का पालन ना करने की भूल की, तो गांव तबाह हो जाएगा।

डहुआ गांव

मध्य प्रदेश में भी एक ऐसा गांव हैं जहां लोगों ने 125 साल से होली नहीं मनाई। इस गांव का नाम हैं डहुआ। कहते हैं कि यहां होली खेलने पर पाबंदी है।

होली के दिन ये गांव शोक में डूबा रहता है। चारों ओर शांति रहती है। लोग यहां किसी अंधविश्वास की वजह से नहीं बल्कि श्रद्धांजलि देने की वजह से होली नहीं मनाते। दरअसल 125 साल पहले इस गांव के प्रधान की एक बावड़ी में डूबने से मौत हो गई। इसी दिन गलती से होली थी। मौत के बाद सभी लोगों ने प्रधान को श्रद्धांजलि देने के तौर पर दोबारा कभी होली ना खेलने का निर्णय लिया। तब से यहां किसी को रंग गुलाल उड़ाते हुए नहीं देखा।  

कोरबा जिला

कोरबा जिले में एक ऐसा गांव हैं जहां के लोगों ने कई साल से होली नहीं खेली। हर किसी को होली के रंग में रंगना पसंद होता हैं लेकिन कोरबा जिले के ग्राम पंचायत पुरेना का आश्रित ग्राम खरहरी के निवासी रंग गुलाल से बचते है। वे होली नहीं मनाते।

इसके पीछे वजह बताई जाती है कि करीब 151 साल पहले यहां होलिका दहन किया जा रहा था। उसी दौरान सभी लोगों के घरों में आग लग गई। ये देखकर सभी इसे दैवीय प्रकोप मानने लगे। बस तभी से यहां होली के दिन सन्नाटा छा जाता है।

वहीं गांव वालों का कहना है कि होली के दिन जब हमारे गांव का एक व्यक्ति, पड़ोसी गांव से होली खेलकर लौटा तो उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। धीरे धीरे तबीयत इतनी बिगड़ गई कि कुछ ही दिनों में उसकी मौत हो गई। तभी से लोगों ने कभी होली ना खेलने का फैसला किया।

खरहरी गांव में होली ना खेलने के पीछे दैवीय प्रकोप से जुड़ी एक कहानी है। बताते हैं कि गांव के पास में आदिशक्ति मां मड़वारानी का मंदिर है। एक ग्रामीण की माने तो एक दिन देवी ने उसे दर्शन दिये और होली ना मनाने को कहा। तभी से उसे दैविक भविष्यवाणी मानकर कभी ना होली मनाने का फैसला किया गया।

तो ये कुछ ऐसी जगह थी जहां आज भी लोग रंग गुलाल उड़ाने से बचते हैं। वे चाहकर भी होली नहीं मना पाते।  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here