सरोजिनी नायडू देश की पहली महिला गवर्नर

0
Sarojini-Naidu

Sarojini Naidu- Freedom fighter & Poet of Modern India

सरोजिनी नायडू ऐसी महिला थीं। जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। एक निडर स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ वह एक अच्छी कवयित्री भी थीं। जिसकी वजह से उन्हें भारत कोकिला के नाम से भी जाना जाता हैं। सरोजिनी नायडू अपने समय की ऐसी वीर महिला थी। जिन्होंने बचपन में ही अपने हुनर से सबको अचंभित कर दिया था।तो चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी अहम बातें…

 सरोजिनी नायडू का बचपन

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ। उनके पिता Aghorenath Chattopadhyay अघोरनाथ चट्टोपध्याय एक वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे। उनकी मां Barada Sundari Devi वरदा सुंदरी एक कवयित्री थीं जो बंगाली भाषा में कविताएं लिखती थीं। शायद यही वजह है कि माता पिता के गुणों की वजह से सरोजनी प्रतिभावान कवयित्री बनी। सरोजिनी आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनके एक भाई विरेंद्रनाथ क्रांतिकारी थे तो दूसरे भाई हरिद्रनाथ कवि, कथाकार और कलाकार। सरोजनी के पिता की इच्छा थी कि वह गणितज्ञ या वैज्ञानिक बने। लेकिन सरोजनी की रूचि तो कविता में थी। बताते हैं कि सरोजनी की कविता से हैदराबाद के निजाम इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सरोजनी को विदेश में पढ़ने के लिए छात्रवृति दी।

होनहार स्टूडेंट और कवयित्री

बचपन से ही सरोजनी एक होनहार स्टूडेंट थी। बारह साल की छोटी उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। अपने हुनर के दम पर उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी में पहला स्थान हासिल किया। मात्र 13 साल की उम्र में उन्होंने the lady of the lake नामक कविता लिखी। इसके अलावा उन्हें उर्दू,  तेलगू,  इंग्लिश, बांग्ला और फारसी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था।16 साल की उम्र में वह इंग्लैंड पहुंची। जहां उन्होंने King’s College, London में दाखिला लिया। उसके बाद Cambridge university के Girton College से शिक्षा प्राप्त की। आगे की शिक्षा के लिए वह इंग्लैंड में दो साल तक रही जहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध साहित्यकार Arthur Simon और Edmond Gausse से हुई।

कविता ने बनाया, भारत की बुलबुल

Edmond ने सरोजनी की  कला की परख को समझते हुए उन्हें अपनी कविताओं में और ज्यादा गंभीरता लानी की सलाह दी। Edmond ही थे जिन्होंने नायडू को भारत की प्राकृतिक सुंदरता जैसे पर्वतों, नदियों, मंदिरों और सामाजिक परिवेश को अपनी कविता में समाहित करने की प्रेरणा दी।उनकी कविताओं का पहला संग्रह the golden threshold गोल्डन थ्रैशोल्ड (1905)  था। इसके बाद दो और कविता संकलनों का प्रकाशन हुआ। जिनमें पहला था The bird of time (1912)और दूसरा the broken wing ब्रोकन विंग। इन्हीं काव्य संकलन ने सरोजनी को एक चर्चित कवयित्री बना दिया। उनकी कविताएं इतनी पसंद की जाने लगी कि फ्रेंच और जर्मन के अलावा ना जाने कितनी भाषाओं में उनका अनुवाद हुआ। सरोजिनी नायडू बच्चों के उपर खासतौर से कविताएं लिखा करती थी। उनकी हर कविता में अलग ही तरह का चुलबुलापन देखने को मिलता था। उन कविताओं को पढ़कर ऐसा लगता था मानो उनके अंदर एक छोटा बच्चा कही ना कही जिंदा है यही वजह हैं कि उन्हें भारत की बुलबुल कहा जाने लगा।

सरोजिनी और गोविंदराजुलू का प्रेम विवाह

 15 साल की उम्र सरोजनी की मुलाकात Dr. Govindarajulu Naidu से हुई। कब उन्हें प्रेम हो गया पता ही नहीं चला और 19 साल की उम्र में दोनों ने विवाह कर लिया। Govindarajulu Naidu गैर ब्राह्मण और पेशे से एक डॉक्टर थे। उस दौरान अंर्तजातीय विवाह करना किसी बड़ी मुसीबत को मोल लेने से कम नहीं था। लेकिन इस साहसी कदम  में सरोजनी के पिता ने पूरा सहयोग दिया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने से पहले सरोजिनी दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के साथ काम कर चुकी थी। नमक सत्याग्रह में सरोजनी ने स्वयंसेवक के तौर काम किया। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने के बाद उनकी मुलाकात कई बड़े लोगों से हुए जिनमें रवींद्रनाथ टैगोर, गोपाल कृष्ण गोखले, एनी बेसेंट, सीपी रामा स्वामी अय्यर शामिल थे। राजनीति और स्वतंत्रता में निर्णायक भूमिका अदा करने के साथ सरोजनी ने महिला सशक्तिकरण के तौर पर भी काम किया। उन्होंने महिला अधिकारों के खिलाफ जोरदार आवाज़ उठाई। इसके लिए उन्होंने राज्य स्तर से लेकर बड़े स्तर तक हर जगह जाकर महिलों को जागरूक किया। सरोजिनी ने निडर और साहस का परिचय तब दिया जब वह  सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधी जी के साथ जेल जाने से पीछे नहीं हटी।

राजनीति में रखा कदम

भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें 21 महीने के लिए जेल में रहना पड़ा…जहां उन्हें ना जाने कितनी यातनाएं सहनी पड़ी। प्रतिभा और लोकप्रियता के चलते सरोजनी 1925 में भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष चुनी गईं। इसकी बाद 1932 में बतौर भारत की प्रतिनिधि बनाकर उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेजा गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरोजनी उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल बनी। बाद में वह लखनऊ जाकर बस गई…इस तरह सरोजनी नायडू ने अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया। 2 मार्च 1949 को उनका निधन हो गया।

सरोजनी नायडू के नाम पर डाक टिकट

13 फरवरी 1964 भारत सरकार ने सरोजनी नायडू की जयंती के मौके पर सम्मान में 15 नए पैसे का एक डाक टिकट जारी किया गया।मधुर वाणी और प्रभावशाली व्यक्तित्व, निडर क्रांतिकारी महिला होने की वजह से उन्हें भारत कोकिला, राष्ट्रीय नेता और नारी मुक्ति आंदोलन की समर्थक के तौर पर याद किया जाता हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here