जानिए महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में

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The Great Hindu King, Chhatrapati Shivaji Maharaj

The Great Hindu King, Chhatrapati Shivaji Maharaj

कहानी उस वक्त कि हैं जब भारत पर मुगलों का राज था। ये ऐसा समय था जब भारतीय हिंदू राजाओं, शासकों ने मुगलों की अधीनता में रहना स्वीकार कर लिया. जिससे हिंदू धर्म खतरे में पड़ गया। ऐसे में शिवाजी महाराज एक उम्मीद बनकर सामने आये उन्होंने ना सिर्फ मराठा साम्राज्य की नींव रखी बल्कि हिंदू राजाओं को एकजुट करना शुरू किया। महाराज शिवाजी ही थे जिन्होंने मुगलई भाषा की जगह मराठा और संस्कृत को राजभाषा बनाया। तो चलिए आज हम आपको छत्रपति शिवाजी की वीरता से रूबरू करवाते हैं।

बचपन

मुगलों को धूल चटाने वाले छत्रपति वीर शिवाजी का जन्म 19 फरवरी को पुणे के पास शिवनेरी के दुर्ग में हुआ। उनके पिता शाहजी और माता का नाम जीजाबाई था। बचपन में उनका नाम राज भोंसले रखा गया था लेकिन बाद में वे छत्रपति शिवाजी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

माता जीजाबाई बनी शिक्षिका

कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी अपनी मां के ज्यादा करीब थे। दरअसल उनके पिता बीजापुर सल्तनत में सेना प्रमुख थे। इसलिए वीर शिवाजी का बचपन अपना मां के साथ ज्यादा बीता। छत्रपति शिवाजी की मां ने ही बचपन में उन्हें शिक्षा दीक्षा दी। जीजाबाई ने उन्हें कई धार्मिक ग्रंथ सुनाए, साहसिक कहानियां सुनाई जिसकी वजह से बाद में शिवाजी एक कुशल योद्धा बने। यही वजह हैं कि शिवाजी महाराज के पहले गुरू और शिक्षक के तौर पर उनकी मां का ही नाम लिया जाता हैं। मां की सीख का ही नतीजा हैं कि वे एक कुशल योद्दा,रणनीतिकार, महान शासक बने। हालांकि वीर शिवाजी की सैन्य शिक्षा में उनके दादाजी का बड़ा योगदान था। लेकिन असली शिक्षक के तौर पर उनकी माता जीजाबाई का नाम लिया जाता हैं।

बनाई खुद की सेना

कहते हैं कि जब छत्रपति शिवाजी का जन्म हुआ उस समय दिल्ली पर शाहजहां, तो दक्कन के तीन राज्यों, अहमदनगर में निज़ामशाही, बीजापुर में आदिलशाही और गोलकुंड़ा में कुतुब का शासन था। इस तरह पूरे हिंदुस्तान पर मुगलों ने अपना शासन जमा लिया था। लगभग सभी रियासतें उनके अधीन थीं। जब शिवाजी महाराज बड़े हुए तो उनके पिता ने उन्हें पुणे की जागीर सौंप दी। लेकिन शिवाजी को आदिलशाही की गुलामी पसंद नहीं थी। इसलिए उन्होंने मुगलों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए सेना बनाने की योजना बनाई। उन्हें फौज के लिए ऐसे हिंदुस्तानियों की जरूत थी जो देश प्रेमी हो और हिंदुओं के अस्तित्व को बचाने की चाहत रखते हो। धीरे धीरे उन्होंने ऐसे लोगों को एकजुट करना शुरू किया।

छत्रपति शिवाजी ने अपनी एक स्थायी सेना बनाई। बताते हैं कि सेना में घुड़सवार सैनिकों को दो भागों में बांटा गया था। घुड़सवार सेना की सबसे छोटी इकाई में 25 सैनिक होते थे, जिनके ऊपर एक हवलदार होता था। हर 25 टुकड़ियों के लिए राज्य की ओर से एक नाविक और नाव की व्यवस्था भी की जाती थी। धीरे धीरे उन्होंने अपने सैनिकों की संख्या को बढ़ा दिया। उन्होंने 2 हजार से बढ़ाकर 10 हजार सैनिकों की सेना तैयार की। यही वजह हैं कि उन्हें एक अच्छा सैन्य रणनीतिकार समझा जाता हैं। कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी पहले ऐसे शासक थे जिन्होंने नौसेना की अहमियत को समझा। उन्होंने सिंधुगढ़ और विजयदुर्ग में अपने नौसेना के किले तैयार करवाए। वीर शिवाजी ने रत्नागिरी में अपने जहाजों को सही करने के लिए दुर्ग तैयार किया।

एक वीर योद्धा, रणनीतिकार

कहते हैं कि उस समय की लड़ाईयों में किले की अहम भूमिका होती थी क्योंकि एक किले का मतलब था एक रियासत। जिसके पास जितने ज्यादा किले उस राजा का साम्राज्य उतना ही बड़ा समझा जाता था। इसलिए छत्रपति शिवाजी ने ऐसी शक्तिशाली सेना को तैयार किया जो किले पर आक्रमण करने में सक्षम हो। कम उम्र में ही उन्होंने अपनी कुशल रणनीति का परिचय दे दिया था। शिवाजी महाराज ने किलों को जीतने के लिए रणनीति बनानी शुरू की।  महज 16 की उम्र में उन्होंने तोरणागढ़ किले पर कब्जा कर लिया।कहते हैं कि वीर शिवाजी ने पहली ऐसा सेना बनाई जिसमें गोरिल्ला युद्ध का जमकर इस्तेमाल हुआ। इसके अलावा जमीनी युद्ध में छत्रपति शिवाजी माहिर थे जिसका बड़ा फायदा उन्हें मुगल शासकों से लड़ने में मिला।

शिवाजी महाराज अस्त्र शस्त्र चलाने के अलावा दुश्मनों को मात देने में माहिर थे। इसलिए उन्हें माउंटेन रैट भी कहा जाता हैं क्योंकि वे अपने क्षेत्र  की भौगोलिक संरचना के बारे में अच्छे से जानते थे। उन्हें हर वो रास्ता पता था जिनके बारे में मुगलों को कोई जानकारी नहीं थी। युद्ध के दौरान इसी का फायदा उठाते हुए शिवाजी महाराज कहीं से भी बचकर निकल जाते औऱ हमला कर देते। फिर गायब हो जाते। इसलिए छत्रपति शिवाजी को गोरिल्ला युद्द का जनक भी कहा जाता हैं।

किले जीनते की ट्रेनिंग कहां से मिली

कहते हैं कि वे बचपन से ही कुशल योद्धा बनने का सपना देखते थे। शुरूआत कुछ इस तरह हुई, जब बचपन में शिवाजी महाराज अपने दोस्तों को जमा कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। जब वह बड़े हुए तो यही उनके काम आया। उन्होंने अपने दुश्मनों पर आक्रमण कर कई किले जीते। छत्रपति शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया।

मुगलों को दी मात

 जैसे जैसे शिवाजी महाराज लड़ाई जीतने लगे, वैसे वैसे मुगलों की चिंता बढ़ने लगीइसलिए मुगल बादशाह औरंगजेब ने उन पर चढ़ाई करने का आदेश दे दिया। औरंगजेब ने अपने सबसे प्रभावशाली सेनापति राजा जयसिंह के नेतृत्व में करीब 1,00,000 सैनिकों की फौज भेजी। लेकिन शिवाजी महाराज खून खराबे और बेवजह की लड़ाई में विश्वास नहीं रखते थे उसलिए उन्होंने महाराजा जयसिंह के सामने संधि का प्रस्ताव रखा। इसके बाद दोनों संधि पर सहमत हो गए और इस तरह 22 जून, 1665 ई. को पुरन्दर की संधि सम्पन्न हुई।

मुगलों के दुश्मन नहीं थे शिवाजी

शिवाजी महाराज पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाया जाता हैं लेकिन ये सच नहीं हैं। इसका प्रमाण ये हैं कि उनकी बनाई सेना में ज्यादातर मुस्लिम सैनिक थे। इसके अलावा शिवाजी ने 1657 तक मुगलों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध कायम भी रखे। असल में शिवाजी महाराज की लड़ाई मुगलों की कट्टता और उद्दंडता के विरुद्ध थी। जिसे औरंगजेब जैसे शासकों ने समेट के रखा था।

दूसरे धर्मों का सम्मान

शिवाजी ना सिर्फ हिंदू धर्म बल्कि दूसरे धर्म के लोगों का भी सम्मान करते थे। उनकी सेना में कई मुस्लिम सैनिक भी थे। जिनमें इब्राहिम खान और दौलत खान नौसेना के खास पदों पर थे। सिद्दी इब्राहिम उनकी सेना के तोपखानों का प्रमुख था। हालांकि वह हिंदू राजनीतिक परंपराओं का विस्तार चाहते थे। इसलिए उन्होंने कभी गैर हिंदू को बेवजह चोट नहीं पहुंचाई। लेकिन वे धर्मांतरण के विरोधी थे, इसलिए उन्होंने हिंदू से सिख और मुस्लिम बने लोगों को अपने धर्म में वापस लाने के लिए कई योजनाएं बनाई। उन्होंने हिंदुओं को एकजुट कर उन्हें अपनी शक्ति की पहचान कराई।  

दयालु शासक के तौर भी जाने जाते हैं शिवाजी

शिवाजी को एक दयालु शासक के तौर पर भी याद किया जाता है। कहते हैं कि वह बेवजह जंग करने में भरोसा नहीं रखते थे इसलिए दुश्मन सेना के सैनिकों के साथ कभी बुरा व्यवहार नहीं किया। लड़ाई  के दौरान कभी किसी महिला को गुलाम नही बनाया। इसे ऐसे जान सकते हैं। एक बार की बात हैं शिवाजी महाराज और अफज़ल खान की लड़ाई चल रही थी जिसमें अफज़ल की मौत हो गई और शिवाजी जीत गए।

शिवाजी महाराज अफजल खान का सिर लेकर अपनी मां जीजाबाई के पास पहुंचे, तब उनकी मां ने कहा कि अफज़ल खान से हमारी दुश्मनी थी, लेकिन उसकी मौत के बाद दुश्मनी भी खत्म हो गई। शिवाजी महाराज ने अपनी मां की बात को समझते  हुए,अफजल खान के शव का अंतिम संस्कार कर उसकी कब्र बनवाई।

धार्मिक प्रवृति

जैसा कि हमने पहले भी बताया कि वीर शिवाजी ने अपना ज्यादातर समय मां के साथ बिताया। वे बचपन से ही रामायण,. महाभारत और वीरगाथाएं सुनकर कर बड़े हुए। दरअसल छत्रपति शिवाजी की मां एक धार्मिक महिला थीं। वे उन्हें अपने धर्म के बारे में शिक्षा देती थीं। यही वजह हैं कि छत्रपति शिवाजी अपने धर्म और संस्कृति को लेकर काफी गंभीर थे।

मराठा राज्य के संस्थापक

छत्रपति शिवाजी एक महान योद्धा और रणनीतिकार होने के साथ साथ मराठा साम्राज्य के संस्थापक भी थे। लंबे समय तक मुगलों से संघर्ष के बाद, शिवाजी महाराज का रायगढ़ में राज्यभिषेक हुआ। वे छत्रपति बने। कहते हैं मुगल साम्राज्य को खत्म करने का ज्यादातर श्रेय मराठा साम्राज्य को ही जाता हैं। छत्रपति शिवाजी ही थे जिन्होंने बीजापुर सल्तनत से मराठा लोगों को आजाद कराया और हिंदू स्वराज्य की स्थापना की। वीर शिवाजी ने रायगढ़ को अपने साम्रज्य की राजधानी घोषित कर एक स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की स्थापना की और अपने अस्तित्व के लिए लगातार मुगल बादशाहों से लड़ते रहे। धीरे धीरे वे अपने राज्य का विस्तार करते रहें। वर्तमान में महाराष्ट्र, मराठी राज्य के नाम से जाना जाता हैं।

तो ये थी छत्रपति शिवाजी की कहानी जो एक कुशल रणनीतिकार, महान शासक, सेनानायक, राजनीतिक, दयालु योद्धा होने के साथ साथ अंग्रेजों को धूल चटाने वाले महान सम्राट थे।

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