वायेजर के बाद इंटरस्टेलर में कौन सा यान जाएगा

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Voyager-Mission

NASA’s Voyager spacecraft are now interstellar,Where to next?

2012 में नासा का एक अंतरिक्ष यान वायेजर 1 सौर मंडल को अलविदा कह कर ब्रहमांड की दूसरी जगह की सैर पर निकल गया। वहीं उसके 6 साल बाद यानि दिसम्बर 2018 में नासा का एक और यान वायेजर 2 भी सोलर सिस्टम को छोडकर इंटरस्टेलर स्पेस में चला गया। इंसान ने आज तक जितने भी अंतरिक्ष यान लांच किए हैं उनमें से सिर्फ 5 अंतरिक्ष यान हैं जिनमें इंटरस्टेलर स्पेस में जाने की शक्ति है और वो यान हैं वायेजर 1, वायेजर 2, पायोनियर 10, पायोनियर 11 और न्यू होराइंजस। जिनमें से वायेजर 1 ओर वायेजर 2 तो इंटरस्टेलर स्पेस में प्रवेश कर गए हैं तो अब सवाल आता है कि वो तीसरा यान कौन सा होगा जो इंटरस्टेलर में जाएगा।

1990 में जब पायोनियर ने नेप्च्यून की आर्बिट को क्रास किया तब न्यूयार्क टाइम्स ने ये छाप दिया था कि पायोनियर ने सोलर सिस्टम को छोड दिया है। पर वो सोलर सिस्टम का अंत नहीं था। उस समय आम इंसान को सौर मंडल के अंतिम छोर का पता नहीं था। पर असल में सौर मंडल तब खत्म होता है। जब हम हीलियोस्फियर की बांउड्री पर कर लें।

हीलियोस्फियर सौर मंडल के चारों ओर एक बबल की तरह है जिसके अंदर सौर मंडल हैं। ये बबल बना है चार्ज पार्टीकल्स से जो हमें नहीं दिखता। इसका पता सिर्फ साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट से लगाया जाता है। हीलियोस्फियर का शेप सूर्य की सोलर विंड पर डिपेंड करता है। अगर सोलर विंड का साइज बढे तो हीलियोस्फियर भी बढ जाता है और अगर सोलर विंड का साइज छोटा हो तो हीलियोस्फियर भी छोटा होता है। सोलर विंड से तो हमें खतरा नहीं है पर सोलर स्टोर्म अगर आ जाए तो ये स्टाॅर्म पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड को इफेक्ट करता है। जिससे धरती के सभी इलेक्ट्राॅनिक्स खराब हो जाएंगे पर अभी भविष्य में सोलर स्टोर्म की संभावना कम है।

वायेजर मिशन के दोनों यान ने हिलियोस्फियर तो पार कर लिया पर रिसर्चरर्स के अनुसार हमारा सूर्य ओर्ट क्लाउड से चारों ओर से घिरा है। ओर्ट क्लाउड एक आइसी रीजन है जिसकी शुरूआत सूर्य से 0.03 लाइट ईसर्य दूर से शुरू होती है और ओर्ट क्लाउड का अंत सूर्य से 3.2 लाइट ईसर्य दूर है। ओर्ट क्लाउड एक स्फैयर यानि गोले की तरह है जिसके अंदर सोलर सिस्टम है और इसके मुताबिक वायेजर 1 और वायेजर 2 अभी भी सौर मंडल में ही हैं क्योंकि अगर ओर्ट क्लाउड अस्तित्व में है तो वो भी सौर मंडल का हिस्सा कहलाएगा और ओर्ट क्लाउड से बाहर निकलने में हजारों साल लग जाएंगे। जब वायेजर 1 और 2 हीलियोस्फियर से बाहर निकले तो उनके इंस्ट्रूमेंट ने यह डाटा रिकाॅर्ड किया।

हीलियोस्फियर हमारे सौर मंडल के ग्रहों का सुरक्षा कवच है। ये हमें दूसरे तारों से आ रही काॅस्मिक रेज के हाई एनर्जी पार्टीकल्स से रक्षा करती है। जैसे ही वायेजर स्पेसक्राफ्ट ने हीलियोस्फियर को पार किया था वैसे ही इन दोनों यानों के चारों ओर काॅस्मिक रेज की भारी मात्रा देखी गई थी। जिसके मुताबिक वैज्ञानिकों को ये पता चल गया कि इन दोनों ने हीलियोस्फियर पार कर लिया है और जर्नली हम हीलियोस्फियर को ही सौर मंडल का अंत मानते हैं पर रियल एस्ट्रोनाॅमी में ओर्ट क्लाउड का अंतिम छोर ही सौर मंडल का अंत है। और अब सौर मंडल के हीलियास्फियर को पार करेंगे पायोनियर 10 पायोनियर 11 और न्यू होराइजन्स। हीलियोस्फियर के घटते और बढते साइज के वजह से ये बताना मुश्किल है कि पायोनियर स्पेसक्राफ्ट और न्यू होराइजंस कब इंटरस्टेलर स्पेस में पहुंचेगे और इन तीनों में से पहले कौन पहुंचेगा।

नासा के ई बुक बियोन्ड अर्थ अ क्रोनिकल आॅफ डीप एक्सप्लोरेशन “Beyond Earth: A Chronicle of Deep Space Exploration के मुताबिक पायोनियर 10, 5 नवम्बर 2017 को पृथ्वी से 118.824 एयू यानि एस्ट्रोनिकल यूनिट दूर था और 2017 में हीलियोस्फियर का अंत पृथ्वी से 220 एयू था। आपको यहां बता दें कि बडी दूरियों को हम एयू में नापते हैं। 1 एयू पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को कहते हैं। यानि कहें तो 1 एयू बराबर 150 मिलियन किलोमीटर्स। पायोनियर 10 हर साल 2.5 एयू का सफर कर पाता है तो उसे हीलियोस्फियर से बाहर निकलने के लिए लगभग 101 एयू टैªवल करना है। उसके हिसाब से वो 2057 में हीलियोस्फियर पार करके इंटरस्टेलर स्पेस में पहुंचेगा। ये एक रफ एस्टीमेशन है क्योंकि हिलियोस्फियर का साइज़ बदलता रहता है।

वहीं पायोनियर 11 पृथ्वी से 97.6 एयू दूर है और अभी जिस तरफ वो जा रहा है उस दिशा में हीलियोस्फियर 120 एयू में खत्म हो जाता है। पायोनियर 11 हर साल 2.3 एयू दूरी टैªवल करता है तो अगर हीलियोस्फियर के साइज में बदलाव न हो तो ये यान 2027 तक इंटरस्टेलर स्पेस में होगा। वहीं वायेजर 2 ने भी 120 एयू का सफर कर इंटरस्टेलर स्पेस को छुआ था। अगर अब बात करें न्यू होराइजन्स की जो अभी सूर्य से 43 एयू दूर है और ये हर साल 3.1 एयू की दूरी टैªवल कर रहा है। इसकी जो दिशा है उधर हीलियोस्फियर काफी छोटा है जिसके कारण ये 2043 में इंटरस्टेलर स्पेस में होगा।

पायोनियर स्पेसक्राफ्ट जब हीलियोस्फियर को पार करेंगे तब वैज्ञानिकों को ये डायरेक्टली पता नहीं चलेगा। ये चीजें हमें दूसरे स्पेसक्राफ्ट या मशीनों से पता चलेगी। क्योंकि पायोनियर यान के जो उपकरण हमें डाटा भेजते थे वो 2002 में ही खराब हो गई थी सीधे शब्दों में कहें तो हमारा पायोनियर 10 और 11 से कोई काॅन्टेक्ट इस समय नहीं है। वहीं न्यू होराजन्स में काफी पावरफुल उपकरण लगे हुए हैं। इससे हमें हीलियोस्फियर के बाहर की दुनिया में मौजूद हर चीज की जानकारी मिलेगी। लेकिन ये हमसे ज्यादा दिन तक नहीं जुडा रह पाएगा क्योंकि जिस दिन इस यान में प्लूटोनियम डीआॅक्साइड plutonium dioxide खत्म हुआ तो उस दिन हमारा न्यू होराइजन्स से संपर्क टूट जाएगा और फिर हमें कोई डाटा नहीं मिलेगा।

एक अनुमान के मुताबिक न्यू होराइजन्स का फ्यूल इंटरस्टेलर स्पेस में पहुंचने से पहले भी खत्म हो सकता है लेकिन ऐसे चासेंज कम ही हैं। हमें कुछ हद तक इंटरस्टेलर की डिटेल्स मिल सकेगी। तो हम कह सकते हैं कि अब इंटरस्टेलर में वायेजर 2 के बाद पायोनियर 11 पहले पहुंचेगा यानि 2027 में।

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