इस सुपर अर्थ के एलियन से बात करने में 22 साल लगेंगे

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Super-Earths Discovered Orbiting Nearby Red Dwarf Gliese 887:

वैज्ञानिकों ने सौर मंडल के बाहर दो सुपर अर्थ को खोजा है। जिनमें जीवन की अपार संभावना है क्योंकि हमारी पृथ्वी की तरह ही ये दोनों सुपरअर्थ हैबिटेबल जोन में हैं यानि यहां पर पानी लिक्विड फाॅर्म में है।

पूरे सौर मंडल में हमारी धरती सबसे अलग और रोचक है, क्योंकि यहां मौसम, वातावरण के साथ-साथ जीवन भी मौजूद है। आज हम टेक्नॉलोजी के युग में जी रहे हैं, जहां हर चीज एक क्लिक की दूरी पर मौजूद है। इसी टेक्नॉलोजी की मदद से वैज्ञानिक अलग-अलग मिशन के जरिए अंतरिक्ष के रहस्य सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।

इन्हीं मिशन के तहत वैज्ञानिक मंगल समेत दूसरे ग्रहों में जीवन की संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं, लेकिन अभी इसमें सफलता मिल पाना काफी मुश्किल है। इसी बीच जर्मनी के खगोलविदों की एक टीम ने चौंकाने वाला खुलासा किया है, जिसने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। दरअसल इस टीम ने Red Dwarf Star Gliese 887 के पास दो सुपर-अर्थ (Super-Earths) की खोज की है, जो संरचना में हमारी पृथ्वी से काफी मिलते-जुलते हैं।

Gliese-887
Credit: dailyexpress

धरती पर रहने वाले नागरिकों के लिए अंतरिक्ष की दुनिया और वहां मौजूद रहस्य काफी रोचक लगते हैं। यही वजह है कि हर कोई दूसरे ग्रह में जीवन और एलियंस की तलाश करना चाहता है। नासा के वैज्ञानिकों की मानें तो सौर मंडल के दूसरे ग्रहों में जीवन हो सकता है, साथ ही वहां एलियंस का निवास भी होना संभव है। ऐसे में Gliese 887 के पास दो सुपर-अर्थ ग्रहों का मिलना अंतरिक्ष में जीवन की संभावना को काफी हद तक बढ़ा देता है। तो आइए जानते हैं जर्मनी के खगोलविदों द्वारा खोजी गई सुपर-अर्थ के बारे में महत्वपूर्ण बातें-

पृथ्वी से दोगुनी है सुपर-अर्थ

जर्मनी की टीम ने Gliese 887 के पास जिन दो सुपर-अर्थ ग्रहों की खोज की है, वह पृथ्वी से 11 प्रकाश वर्ष दूर स्थित हैं। इनकी बनावट काफी हद तक पृथ्वी से मिलती-जुलती है, लेकिन यह आकार में पृथ्वी से दोगुना बड़े हैं जबकि इनका द्रव्यमान भी काफी ज्यादा है। हालांकि यह सुपर-अर्थ आकार के मामले में Uranus और Neptune से छोटे हैं।

यह दोनों ग्रह सौर मंडल के बाहर खोजे गए हैं, जिन्हें Gliese 887b और Gliese 887c नाम दिया गया है। दरअसल जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ गॉटिंगन (University of Göttingen) की साइंटिस्ट और प्रोफेसर सैंड्रा जेफर्स (Sandra Jeffers) के नेतृत्व में Red Dots नामक टीम Gliese 887 को लेकर अध्ययन कर रही थी। इसी मिशन के दौरान उन्होंने Gliese 887 के पास दो सुपर-अर्थ खोज निकाले।

इस खोज को लेकर टीम का कहना है कि इन ग्रहों का मिलना हमारे सौर मंडल के बाहर जीवन की खोज की संभावनाओं को बढ़ाता है। Gliese 887 के अध्ययन से आने वाले समय में काफी फायदा होगा। Red Dots टीम लंबे समय से Gliese 887 पर स्पेक्ट्रोग्राफ के जरिए नजर बनाए हुए है, साथ ही इस ग्रह के पीछे 20 साल की प्रक्रिया पर विश्लेषण कर रही है। हो सकता है कि इस अध्ययन की मदद से वैज्ञानिकों को सौर मंडल के बाहर जीवन की तलाश करने में आसानी होगी।

नई तकनीक से ग्रहों की गति में किया बदलाव

Gliese 887 पर अध्ययन कर रही Red Dots टीम ने खोजे गए दोनो सुपर-अर्थ की गति में बदलाव किया है और यह काम डॉपलर वोबल (Doppler Wobble) तकनीक से पूरा किया गया है। वर्तमान में यह दोनों ग्रह बुध ग्रह के मुकाबले ज्यादा तेजी से घूम रहे हैं।

चूंकि Gliese 887b और Gliese 887c अपने तारे Gliese 887 के बेहद नजदीक मौजूद हैं, इसलिए संभावना जताई जा रही है कि यहां पानी हो सकता है। और जिस ग्रह में पानी मौजूद होता है वहां जीवन की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। दोनों सुपर-अर्थ की बनावट तो पहले ही धरती से मिलती है, ऐसे में वहां पानी का मिलना अपने आप में काफी बड़ी उपलब्धि होगी।

हो सकता है धरती जैसा वातावरण

शोधकर्ताओं की टीम का मानना है कि Gliese 887b और Gliese 887c में काफी कुछ धरती से मेल खा सकता है। जैसे यहां कि चट्टानें धरती या मंगल ग्रह की तरह हो सकती है, वहीं इन ग्रहों का वायुमंडल धरती की तुलना में ज्यादा मोटा हो सकता है। इन परिस्थितियों को देखते हुए सुपर-अर्थ में जीवन की संभावनाएं खोजी जा रही हैं।

Super-Earth-Gliese-887
Credit: spaceaustralia

शोधकर्ताओं का मानना है कि शायद खोजे गए दोनों ग्रहों में एलियंस का निवास हो, जो पानी और दूसरी चीजों के सहारे वहां जीवित हों। अगर किसी ग्रह का वातावरण धरती या मंगल ग्रह से काफी हद तक मेल खाता है, तो वहां जीवन होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। लेकिन सौर मंडल के बाहर होने की वजह से इन दोनों सुपर-अर्थ के बारे में अभी भी बहुत कुछ पता लगाना बाकी है।

Gliese 887b और Gliese 887c के मिलने के बाद एक बात तो पक्की है कि धरती के अलावा सौर मंडल के बाहर भी जीवन हो सकता है, जहां एलियंस निवास करते होंगे। अब तक एलियंस को लेकर केवल थ्योरी ही सामने आई हैं, ऐसे में अगर जर्मनी के शोधकर्ता उनके बारे में कुछ पता लगाने में कामयाब हो जाते हैं तो यह खोज विज्ञान को एक अलग ऊंचाई पर ले जाएगी।

Gliese 887 में जीवन को लेकर खगोलविदों में लंबे समय से बहस चली आ रही है, लेकिन आज तक कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया। हालांकि ज्यादातर खगोलविद इस बात पर सहमति जताते हैं कि यह अपने ग्रहों के लिए एक अच्छा वातावरण तैयार करता है।

Gliese 887 आसमान में सबसे ज्यादा चमकने वाला बौना तारा है, जो नंगी आंखों से मंद दिखाई देता है। इसकी विशेषता इसके आसपास मौजूद ग्रहों के लिए काफी फायदेमंद और जीवन की संभावनाओं को बढ़ाने वाली हो सकती है।

क्या धरती के अलावा कहीं और बसाई जा सकती है इंसानी बस्तियां

धरती के अलावा किसी दूसरे ग्रह में जीवन होना या इंसानी बस्तियां बसाना किसी सपने से कम नहीं लगता, जिसे पूरा करने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक दिन-रात काम कर रहे हैं। अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा लंबे समय से एलियंस और उनसे जुड़े ग्रहों का पता लगाने की कोशिश कर रही है, वहीं अन्य देशों के वैज्ञानिक धरती के अलावा दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाएं खोज रहे हैं।

कुछ समय पहले चांद पर भी कई लोगों द्वारा प्लॉट खदीरने की खबर सामने आई थी, जहां भविष्य में पृथ्वी जैसा माहौल तैयार करके इंसानी बस्तियां बसाई जा सकती हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या धरती के अलावा किसी दूसरे ग्रह में इंसानी बस्ती बसाना मुमकिन है?

Mars base concept
Credit: humanmars

अगर विज्ञान की मानें तो ऐसा होना बिल्कुल मुमकिन है, भले ही इस काम में सालों का लंबा वक्त क्यों न लग जाए। विज्ञान ने आज इतनी तरक्की तो कर ही ली है कि हम विभिन्न ग्रहों की गति बदलने में सक्षम हैं। तो हो सकता है कि आने वाले समय में हमारे वैज्ञानिक Gliese 887b और Gliese 887c सुपर-अर्थ (Super-Earths) में जीवन की तलाश करने में कामयाब हो जाए।

अगर ऐसा होता है तो वह दिन दूर नहीं जब एक बड़ी आबादी धरती से दूर किसी दूसरे ग्रह में रह रही होगी। हालांकि इन सभी चीजों के लिए हम सभी को लंबे वक्त का इंतजार करना होगा। अगर Gliese 887b और Gliese 887c में एलियंस रहते भी हैं, तो उन्हें धरती से सिग्नल भेजने पर वह 11 साल बाद वहां पहुंचेगा और वहां से धरती पर वापस सिग्नल पहुंचने में 11 साल लगेंगे। यानि वैज्ञानिकों समेत इंसानों को 22 साल का इंतजार करना होगा। लेकिन कहते है न इंतजार का फल मीठा होता है, तो शायद यह इंतजार जीवन की नई संभावना लेकर आए।

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