लाइका जिसने इंसानों को अंतरिक्ष में पहुंचाया

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Laika dog in space

लाइका जिसने अपनी जान देकर इंसानों को अंतरिक्ष में पहुंचाया

मानव जाति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब एक जीवित प्राणी ने अंतरिक्ष में अपना रास्ता बनाया। पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर जीवन कभी किसी ने नहीं देखा था। और सबसे पहले ये करने के लिए लाइका को चुना गया। अंतरिक्ष में तैरते हुए, लाइका का शरीर हल्का हो गया था और दिल धीमी गति से धड़क रहा था। वो एकदम शांत थी। ऐसा लग रहा था मानो  उसने अपनी किस्मत के आगे घुटने टेक दिए हों – कभी अपने घर वापस न आने के लिए ही उसे अंतरिक्ष भेजा गया था।

दुनिया की पहली अंतरिक्ष यात्री – लाइका – इन्सान नहीं थी। वो गली में रहने वाली एक फीमेल डॉग थी। इस तरह, 60 साल पहले, स्पेस में भेजे गए दूसरे अंतरिक्ष यान, स्पुतनिक 2, को पृथ्वी की ऑरबिट में लांच किया गया। जिसने अंतरिक्ष की खोज के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण कायम किया।  

सोवियत यूनियन की एक टीम अपने इलाके के बेसहारा फीमेल कुत्तों को पकड़ रही थी। और यहीं से इस अंतरिक्ष यात्रा की नींव पड़ी। स्पेस मिशन्स के लिए फीमेल कुत्तें पहली पसंद थे। छोटा आकार और मेल कुत्तों के मुक़ाबले, उनका विन्म्र स्वभाव इसका कारण थे। बेसहारा कुत्तों को इसलिए चुना गया क्योंकि उन्हें कठिन परिस्थितियों में रहने की आदत होती है। और स्पेस के मिशन के लिए, सोवियत यूनिन को ऐसे हीं कुत्तों की ज़रूरत थी। उनकी ये खोज लाइका पर आके रूकी।

Moscow की गलियों में भटक रही, छोटी और दुबली-पतली सी लाइका,  मिक्सड प्रजाती की थी। उनका असली नाम Kudryavka (कुदरायवका) था। Soviet space program medical scientist, Dr. Vladimir Yazdovsky याज़डूवस्की, और उनकी टीम, ने जब उन्हें पकड़ा, तब उन्हें रहने का ठिकाना मिला। हालांकि इस नई जगह पर उन्हें बस Russian space mission के लिए ट्रेन किया जाना था।

ट्रेंनिग के लिए Kudryavka जैसे कई बेसहारा कुत्तों को USSR साइन्टिसटों नें पकड़ा। ट्रेंनिग के के दौरान, लगभग 20 दिनों के लिए, बहुत ही छोटी सी जगहों में उन्हें क़ैद करके रखा गया। अंतरिक्ष यान में बहुत ही कम जगह में सरवाइव करने के लिए उन्हें ऐसी ट्रेनिंग दी जा रही थी। पहले उन्हें थोड़े छोटे पिंजड़ों में रखा गया, उसके बाद और छोटे पिन्जड़ो में क़ैद कर दिया जहां उनका हिल्ना-डुलना भी मुश्किल हो गया।

ऐसी कठिन परिस्थितीयों को झेलते-झेलते मानों वो ये भूल ही गए कि वो कभी आज़ाद भी थे। उन्हें  constipation की शिकायतें होने लगी और दवाइयां दिए जाने पर भी राहत नहीं मिल रही थी। ट्रेंनिग ने कई कुत्तों को काफी बिमार और डरपोक बना दिया। लेकिन Kudryavka  थोड़ी अलग निकली। स्पेस प्रोग्रेम की कठिन परिस्थितीयों को झेलने में वो सक्षम रहीं। हालांकि ऐलबीना नाम की दूसरी फीमेल डॉग साइन्टिसटों की पहली पसंद बनी। ऐलबीना को एकबार पहले ही स्पेस के आधे रास्ते तक भेजा जा चुका था। इस मामले में वो Kudryavka के मुकाबले बेहतर पसंद थी। मगर मानो ज़िन्दगी Kudryavka से खफा थी। ऐलबीना ने उस ही दौरान बच्चों को जन्म दिया जिस वजह से उसे इस घातक उड़ान से दूर रखा गया बैक-अप के रूप में उसे रख कर आखिरकार Kudryavka को मिशन के लिए चुना गया।

Kudryavka और  ऐलबीना दोनों कुत्तों के शरीर में medical devices फिट किए गए।  इन की मदद से उनकी शारीरिक हरकतों पर नज़र रखा जाना था। इसके अलावा उनके ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट  और ब्रीथिंग रेट की जानकारियां भी इनकी मदद से मिलनी थी।

रेडियो की मदद से आम लोगों को Kudryavka  और स्पेस मिशन के बारे में बताया गया। Kudryavka  ने रेडियो पर भौंक कर अपने आप को लोगों से रूबरू कराया। इस तरह उनका नाम लाइका पड़ा रशियन भाषा में जिसका मतलब बार्कर यानि भौंकनेवाला होता है।  इस तरह बेसहारा फीमेल डॉग, Kudryavka, को  Soviet space dog, Laika में बदल दिया गया।

अंतरितक्षयान,  स्पुतनिक 2 में एक pressurized compartment में लाइका को बैठाकर, उन्हें अर्थ की ऑरबिट में भेजा जाना था। जाने का तो ठीक पर स्पुतनिक 2 का निर्माण वापस आने के लिए नहीं किया गया था। इस वजह से लाइका का मरना निश्चित था।  साइन्टिस्टों ने स्पेस में लाइका के लिए सिर्फ  सात दिन के लिए oxygen supply की तैयारी की। वे चाहते थे कि लाइका की मौत, बिना oxygen के  आसानी से हो जाए। .

एक तरफ जहां सोवियत यूनिन लाइका को इस बड़े प्रोजेक्ट के लिए तैयार कर रहा था, वहीं दूसरी तरफ जानवरों के लिए काम करने वालों ने इस मिशन का विरोध करना शुरू कर दिया। ब्रीटेन ने तो यहां तक इसे राक्षसी और घिनौना बता दिया। प्रेस, डेली मिरर ने अपना एक आर्टिकल “The Dog Will Die, We Can’t Save It”  सोवियत यूनिन के इस प्रोजेक्ट को नकारते हुए छापा। कुछ animal rights organizations ने लोगों से सोवियट यूनिन के embassies में शिकायत करने की गुहार लगाई।

इन सभी विरोध प्रदर्शनों के जवाब में सोवियट ने कहा कि ये सब वो सिर्फ लोगों की भलाई के लिए कर रहे थे। उनका मकसद जानवरों को प्रताड़ित करने का नहीं था। लाइका की मौत को हालांकि रोका जा सकता था। शुरूआत में सोवियत ने स्पेस में उसके ठीक से रह पाने, और उसी हाल में उसको वापस ले आने का प्लान किया था।  

बदकिस्मती से सोवियट नेता  Khrushchev क्रुश-चव ने एक ऐसा फरमान सुनाया जिसकी वजह से साइन्टिस्टों को अपने प्लान में तबदीलियां करनी पड़ी। Khrushchev  चाहते थे कि Sputnik 2 को लॉच  Bolshevik बॉलशेविक Revolution की 40वीं सालगिरह पर किया जाए। इसके लिए साइन्टिस्टों के पास समय कम था। इतने कम समय में उनके लिए एक तरफा विमान बना पाना ही संभव था। बाद में ये डिसाइड हुआ कि लाइका को सिर्फ एक हफ्ता स्पेस में जीवित रखा जाएगा जिसके बाद उन्हें खाने में ज़हर देकर आसान मौत दी जाएगी।

स्पूतनिक 1 के बाद अंतरिक्ष में अर्थ की ऑरबिट में भेजे जा रहे दूसरे विमान,  Sputnik 2  को बिना किसी प्रारंभिक डिज़ाइन के तैयार किया गया।  उसका आकार सिर्फ वॉशिंग मशीन जितना ही रखा गया। इतनी कम जगह में जंज़ीर से बंधे कुत्ते को सिर्फ बैठने और लेट जाने की ही आज़ादी थी।

सोवियट यूनीयन ने भले ही लाइका के लिए मौत को चुना था मगर कहीं न कहीं उनके दिल में लाइका के लिए दया थी। Dr. Vladimir Yazdovsky, जिन्होंने ने पहले ही दिन से लाइका का ध्यान रखा था, उड़ान के कुछ दिन पहले उसे अपने घर ले गए। लाचार कुत्ते को एक आखरी बार उन्होंने खुला छोड़ दिया और बिल्कुल पालतू कुत्ते की तरह रखा।

तीन नवंबर 1957, Sputnik 2 को आखिरकार लॉच करने का दिन आ ही गया। लाइका को अंतरिक्ष यान में बैठाया गया। लाइका ने स्पेससूट पहन रखा था जो सेन्सर्स, मेटल restraints से लेस था। ये स्पेससूट उसे साफ़ रखने के लिए भी काम आना था। यान में बैठते ही लाइका को डर लगने लगा। समान गति के मुकाबले उसके दिल की धड़कने तीन से चार गुना बढ़ गई।

सुखद यात्रा विश करते हुए, साइन्टिस्टों ने सुबह 5:30 बजे करीब Sputnik 2  को लॉच किया। orbit में लाइका सुरक्षित पहुंच गई। ‘The National Air and Space Museum,’  में आज भी उसके respiration patterns के प्रिंटऑट्स मौजूद हैं। Soviet Union का दावा है कि 3 नवम्बर को उड़ान के बाद, November 12 तक लाइका ज़िन्दा रहीं। हालांकि 2002 में, scientist, Dimitri द-मीत्री Malashenkov मालाशेनकोव, ने ये बात उजागर की लाइका सात घंटों में ही मर गई थी। उस समय वो अर्थ की चौथी ऑरबिट में रही होंगी।

भले ही Soviet Union ने ये दावा किया हो कि लाइका को खाने में ज़हर मिलाकर उसे आसान मौत दी गई, मगर Malashenkov मालाशेनकोव के अनुसार उनकी मौत दर्दनाक थी। Sputnik 2 का तापमान अचानक से  90 degree के ऊपर चला गया। लाइका की धड़कने लगातार बढ़ने   लगी और फिर कभी न  धड़कने  के लिए रूक गई। बाद में  Sputnik 2 भी  April 1958, में ऊपरी वातावरण में जलकर खाक़ हो गया।

आज हम लाइका के बारे में वीडीयोस, कविताऐं, किताबें पढ़ सकते हैं। उनकी मौत के बाद भी , लोग दुनिया के लिए किए गए उनके बलिदान को नहीं भूल पाएं हैं। इस तरह मरकर भी लाइका लोगों की यादों में ज़िन्दा हैं।

मिशन ‘Sputnik 2,’ की टीम का हिस्सा रह चुके, साइंटिस्ट, Oleg Gazenko गैज़न्को, ने बाद में कहा,” “जितना समय बीत रहा है, उस बात के लिए मुझे उतना बुरा लग रहा है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था। हमने इतना ज़्यादा भी मिशन से नहीं सीखा था कि लाइका कि मौत के फैसले को ठीक बताया जा सके।

Laika की याद में U.S. में एक Animal Rights के बारे लिखी जाने वाली magazine का नाम  LAIKA Magazine  रखा गया। कई novelists, जैसे की रशिया के  Victor Pelevin और ग्रेट ब्रिटेन के Jeannette Winterson ने लाइका के ऊपर किताबें भी लिखी। सन् 1957 से  1987 तक Romania, Albania, Poland and North Korea जैसे सोवियट के सहयोगी दलों ने Laika stamps भी जारी किए।  

Laika, space में भेजी जाने वाली पहली जानवर नहीं थी। सन् 1947  से ही द यूनाइटिड स्टेट्स और  Russia  ऐसे कई जानवरों को उपर भेज चुके थे। chimpanzee, चूहे, मेढ़क, यहां तक की कछुए भी space में, लाइका से पहले भेजे जा चुके थे। हालांकि  Laika, का मरना निश्चित तौर पर तय था जब्कि बाकी जानवरों को वापस आने के मौके उपलब्ध कराए गए थे।

लेकिन जो भी हो, ये कहना ग़लत नहीं होगा कि लाइका ने ही इन्सानों के अर्थ के ऑरबिट में जा सकने के दरवाज़े खोले।  इसी के तीन-चार साल में ही Yuri Gagarin space में जाने वाले पहले आदमी  बन गए। वो सफलता पूर्वक वापस भी आ गए। क्या ‘Sputnik 2 मिशन के लिए लाइका की कुर्बानी का फैसला सही था… आपका क्या मानना है कमेंट सेक्शन में हमें बताएं।

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